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तरावीह नमाज़

✦ उरवा बिन ज़ुबैर रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की आईशा रदी अल्लाहू अन्हा ने फरमाया एक बार (रमजान की ) आधी रात में रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैही वसल्लम मस्जिद में तशरीफ़ ले गये और वहाँ ( तरावीह की ) नमाज़ पड़ी, सहाबा रदी अल्लाहू अन्हुमा भी आपके साथ नमाज़ में शामिल हो गये,
✦ सुबह हुई तो उन्होने उसका चर्चा किया फिर दूसरी रात में लोग पहले से भी ज़्यादा शामिल हो गये, और आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी.
✦ दूसरी सुबह को और ज़्यादा चर्चा हुआ तो तीसरी रात उस से भी ज़्यादा लोग जमा हो गये , आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम ने (उस रात भी) नमाज़ पड़ी और लोगो ने आपकी पैरवी की,
✦ चोथी रात को ये आलम था की मस्जिद में नमाज़ पड़ने आने वालो के लिए जगह भी बाक़ी नही रही ( मगर उस रात आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम नमाज़ के लिए बाहर ही नही आए) बल्की सुबह नमाज़ के लिए तशरीफ़ लाए और जब नमाज़ पढ़ ली तो लोगो की तरफ मुतवज्जा होजर शहादत के बाद फरमाया अम्मा बाद तुम्हारे यहाँ जमा होना का मुझे इल्म था लेकिन मुझे इसका ख़ौफ्फ हुआ की ये नमाज़ तुम पर फ़र्ज़ ना हो जाए और फिर तुम उसे अदा ना कर सको और जब आप सलअल्लाहू अलैही वसल्लम इस दुनिया से रुखसत हो गये तो उसके बाद भी यही कैफियत रही ( लोग अलग अलग तरावीह पढ़ते रहे ) 

सही बुखारी,जिल्द 3, 2012

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